नशे की जद में युवा

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लेखक: Dr.Ramashanker Kushwaha (rsmoon.kushwaha@gmail.com)
युवाओं में नशे की लत तेजी से बढ़ रही है। आंकड़े बताते हैं कि नशाखोरी में सदैव एक उम्र विशेष के लोग ही शामिल रहे हैं। अंतर इतना है कि पहले नशा चोरी-छीपे होता था। अब यह फैशन बनता जा रहा है। इस फैशन का सबसे बुरा पहलू है उन युवाओं में इसका प्रचलन बढ़ना, जो नाबालिग हैं। नशाखोरी का यह कारोबार शैक्षणिक संस्थाओं के आसपास विकसित होने लगा है। दिल्ली-एनसीआर स्थित शैक्षणिक संस्थाएं और उनसे लगे बाजारों में इस धंधे का विस्तार बहुत तेजी से हो रहा है। हाल ही में नोएडा स्थित दो संस्थानों के छात्र गांजा बेचते हुए पकड़े गए। उनकी गिरफ्तारी से पता चला कि समस्या काफी बढ़ गई है। पकड़े गए छात्र जिन संस्थानों से सम्बद्ध थे, वह इस प्रकार के संस्थान हैं जिसमें पढ़ने वाले लाखों रुपए की फीस देकर इंजिनियरिंग और कुछ अन्य व्यावसायिक कोर्स करने आते हैं। इसमें पढ़ने वाले अधिकांश बच्चे आर्थिक रूप से समृद्ध हैं। यदि कुछ कम समृद्ध हैं तो भी इंजीनियर बनने के सपने के साथ दूर-दराज से वहां आए हैं और कुछ करने का प्रयास उनका भी है।
यह सत्य है कि नई पीढ़ी कई प्रकार के दबाव और हताशा से गुजर रही है। कई साल की कड़ी मेहनत के बाद किसी कोर्स में दाखिला मिलता है। फिर उसकी फीस भरने के साथ अन्य कई समस्याएँ आती हैं। ज्यादातर व्यावसायिक कोर्स में बच्चों को लोन आदि लेकर जैसे-तैसे पढ़ाई पूरी करनी पड़ती है। उसके बाद नौकरी की समस्या शुरू होती है। ऐसे में बच्चे कई प्रकार के तनाव से गुजरते हैं। इसी तनाव का लाभ लेकर उन्हें नशे की लत लगा दी जाती है। इसमें जो नशे का सेवन करते हैं, उनके लिए तनाव और विद्यार्थी रहते हुए जो व्यापार करने लगते हैं, उनके लिए पैसे का लालच, यह दोनों बातें सामानांतर चलती हैं।
विश्वविद्यालय और उसके आसपास इस तरह का कारोबार बहुत तेजी से बढ़ रहा है। उदाहरण के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय (उत्तरी परिसर) के आसपास कमला नगर और गुरुतेग बहादुर नगर, बाजार के लिहाज से दो प्रमुख जगहे हैं। इसमें कमला नगर तो पहले से ही काफी विकसित है। इसको छोटा क्नाट प्लेस भी कहा जाता है। गुरु तेगबहादुर नगर स्थित बाजार का विकास पिछले कुछ वर्षों में बहुत तेजी से हुआ है। इसमें खुलने वाली अधिकांश दुकाने ‘रेस्तरां, स्पा, बार’ आदि नाम से हैं। इसमें हुक्का और ई-सिगरेट का प्रचलन काफी ज्यादा है। इसमें जाने वाले उपभोक्ता के रूप में अधिकांश 15 से 25 वर्ष के बीच के बच्चे हैं। खासकर स्कूल और महाविद्यालय में पढ़ने वाले छात्र-छात्राएं अधिक जाते हैं। किसी बच्चे से उन दुकानों में मिलने वाली सुविधाओं के बारे में बात करें तो वह दबी जबान से यह कहते हैं कि ‘आप को जो चाहिए, यहाँ सब मिलेगा’।
कमला नगर में मुख्य मार्ग से अंदर के घरों में इस प्रकार की दुकानें अधिक खुली हैं, जिनको रेस्तरां, बार, स्पा आदि नाम से जाना जाता है। उत्तरी दिल्ली में सत्यवती कालेज के बगल में स्थित डीडीए बाजार में भी इस प्रकार की दुकाने हैं। ऐसी दुकानों में जाने वाले उपभोक्ताओं की उम्र सब जगह लगभग एक जैसी ही है। शाम को यदि आप इन दुकानों के आसपास हों तो आप बच्चों के व्यवहार और उनकी गतिविधि को देखकर समझ सकते हैं कि वह किस स्थिति की तरफ बढ़ रहे हैं। दुकान से बहार निकलने वाले किसी भी बच्चे के पैर में लड़खड़ाहट आसानी से देख सकते हैं।
पंजाब में नशाखोरी अपने चरम पर है। इसकी जद में सबसे अधिक युवा हैं। स्वाभाविक है वहां यह हालत एक दिन में नहीं पैदा हुई है। कम से कम दो से तीन पीढ़ी तक इसका धीरे-धीरे विकास हुआ और किसी ने इसकी तरफ ध्यान नहीं दिया। देश में इस प्रकार की समस्याओं के लिए कानून कम नहीं हैं। समस्या उनके पालन की है। कानून का पालन करवाने वाले उसका हिस्सा बन जाते हैं। जब समस्या शुरू होती है, तो वह उसको दरकिनार करते हैं। धीरे-धीरे स्थिति अनियंत्रित होने लगती है। तब उस समस्या पर बात करना और उसका समाधान खोजना बहुत कठिन हो जाता है। उदाहरण के लिए कमला नगर और जीटीबी नगर में इस प्रकार का धंधा बहुत तेजी से पनप रहा है। न्यायालय का नियम यह है कि महाविद्यालय/स्कूल के आसपास नशे का सामान बेचने वाली कोई दुकान नहीं होगी। जबकि यह सभी दुकानें एक किलोमीटर के अंदर हैं। दूसरा उसका उपभोक्ता 18 वर्ष से कम उम्र का नहीं होगा। लेकिन इसमें जाने वालों की उम्र देखने की जहमत किसी ‘बार-रेस्तरां-स्पा’ का मालिक नहीं उठाता। क्योंकि उनको अपनी आमदनी से मतलब है।
नशाखोरी की समस्या बहुत बड़ी समस्या है। दुनियां के कई देश इस समस्या में बुरी तरह उलझ गए हैं। थाईलैंड की सरकार को उसकी भयावहता को देखते हुए नशे के कारोबारियों को ‘देखते ही गोली मारने’ का आदेश जारी करना पड़ा। इसकी कल्पना करना मुश्किल नहीं कि किसी देश की सरकार ऐसा आदेश कब देती है। दक्षिण अफ्रीका के कई देश इस समस्या से जूझ रहे हैं। स्पेन और जर्मनी जैसे देश युवाओं में बढ़ रही नशाखोरी के खिलाफ़ सख्त कानून की मांग कर रहे हैं। सरकार ड्रग्स और अल्कोहल से जितना इससे टैक्स कमाती है, उससे अधिक नशाखोरी से होने वाली बुराइयों और बीमारियों के इलाज पर उसे खर्च करना पड़ता है। एक रिपोर्ट के अनुसार बीड़ी बेचने से सरकार को जितना मुनाफा होता है, उसका तीन गुना उससे होने वाली बीमारी टीवी और दमा के उपचार पर खर्च करना पड़ता है। नशाखोरी किसी भी देश के लिए बहुत घातक है। सरकर को इस तरह की समस्याओं पर तत्काल विचार कर गंभीरता से उसका निदान करना चाहिए। यह अच्छी बात है कि दुनियाँ के कई देशों में इन समस्याओं को लेकर चिंता बढ़ रही है। लेकिन जरुरत है जल्दी से कुछ सकारात्मक कदम उठाने की।
धन्यवाद
सरकारो को इस समस्या पर ध्यान देने की जरूरत है। यह बात जब हमे और आप को पता चल जाता है की कहाँ गलत हो रहा है तो सरकारों को क्यों नही पता चल पाता? क्योंकि सबके हफ्ते चलते हैं ऐसी दुकानों पर। किसी को समस्या का निदान नही करना है, बल्कि सरकारे लोगो को नशे की ओर धकेलना चाहती ही है, ताकि कल ये युवा कहीं जगरूक होकर अपने अधिकारों की बात ना करने लगे।